अवसाद के इलाज में कारगर है म्यूजिक थेरेपी

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अवसाद के इलाज में कारगर है म्यूजिक थेरेपी

वसाद से ग्रसित करोड़ों लोग सुरों के सागर में गोते लगा कर इस समस्या से निजात पा सकते हैं। यह बात एक शोध से भी साबित हो गई है। एक प्रमुख शोधकर्ता का कहना है म्यूजिक थेरेपी की मदद से व्यक्ति का मूड बेहतर किया जा सकता है और उसे अवसाद से उबारा जा सकता है। यह शोध किसी न किसी रूप में अवसाद से पीड़ित दुनियाभर के लगभग 12 करोड़ लोगों के लिए उम्मीद की किरण है।

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार शोधकर्ताओं का मानना है कि होम्योपैथिक दवाएं और मानसिक चिकित्सा तो अवसाद का पारंपरिक इलाज हैं ही, लेकिन म्यूजिक थेरेपी के भी अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। अवसाद से निपटने के लिए म्यूजिक थेरेपी का इस्तेमाल तो काफी पहले से होता रहा है, लेकिन अब यह बात वैज्ञानिक तौर पर साबित हो गई है कि यह थेरेपी अपना असर भी दिखाती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों पर म्यूजिक थेरेपी का प्रयोग किया गया, उनमें अवसाद का स्तर काफी कम पाया गया। अगर तनावग्रस्त रहते हैं तो इसका अंजाम भी जान लीजिए। तनाव शरीर को सात स्थानों पर ज्यादा चोट पहुंचाता है।

तंत्रिका तंत्र

तनाव शारीरिक हो या मानसिक, शरीर अपनी ऊर्जा को संभावित खतरे से निपटने में लगा देता है। इस दौरान तंत्रिका तंत्र की ओर से एड्रीनल ग्रंथि को एड्रिनेलिन और कोर्टिसोल जारी करने का संकेत दिया जाता है। ये दोनों हार्मोन दिल की धडक़न को तेज कर देते हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ा देते हैं। पाचन क्रिया तब्दील हो जाती है। खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है।

मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम

मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम यानी मसल्स और स्केलेटन से जुड़ी वह प्रक्रिया जो शरीर को गतिमान बनाती है। तनाव के दौरान मसल्स यानी मांसपेशियां तनाव में आ जाती है। नतीजा होता है सिर दर्द और माइग्रेन जैसी कई बिमारियां।

श्वसन तंत्र

तनाव की दशा में सांस की आवृत्ति बढ़ जाती है। तेज सांस लेने या हाइपरटेंशन के कारण कभी-कभार दिल का दौरा भी पड़ जाता है।

हृदय की धमनियां

एक्यूट या तीव्र तनाव क्षणिक होता है। इसके आघात से हृदय की गति बढ़ जाती है। हृदय की मांसपेशियों में संकुचन भी ज्यादा होता है। वैसल्स् या वाहिकाएं जो बड़ी मांसपेशियों और हृदय तक रक्त पहुंचाती हैं, फैल जाती हैं। नतीजा होता है कि अंगों में रक्त दबाव बढ़ जाता है। तीव्र तनाव की पुनरावृत्ति पर हृदय की धमनियों में सूजन आ जाती है। नतीजा होता है हृदयाघात।

अंत:स्राव प्रणाली

एड्रीनल ग्रंथि- जब शरीर तनाव में होता है तो दिमाग हाइपोथैलेमस से संकेत भेजता है। संकेत मिलते ही एड्रेनाल की ऊपरी परत से क्रिस्टोल और इसी ग्रंथि का केंद्र जिसे एड्रेनाल मेड्यूला कहते हैं, वह एपिनेफ्राइन का उत्पादन करने लगता है। इन्हें तनाव हार्मोस भी कहा जाता है। लिवर जब क्रिस्टोल और एपिनेफ्राइन प्रवाहित होता है तो रक्त में शर्करा यानी ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है।

पाचन तंत्र क्रिया

भोजन नलिका- तनाव के शिकार लोग या तो जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं या फिर कम। अगर ज्यादा खाते हैं या फिर तंबाकू या अल्कोहल की मात्रा बढ़ जाती है तो भोजन नलिका में जलन और एसिडिटी जैसी दिक्कतों से दो-चार होना पड़ता है।

आमाशय - तनाव की दशा में आपके आमाशय में उद्वेलन होता है। यहां तक कि उबकाई या दर्द का एक कारण तनाव भी हो सकता है।

आंतें - तनाव पाचन क्रिया को भी प्रभावित कर सकता है। इसके नतीजे के तौर पर डायरिया और कब्ज भी उभर सकते हैं।

प्रजनन क्रिया - अत्यधिक तनाव टेस्टोस्टेरान और शुक्राणुओं के उत्पादन को क्षीण कर देता है। इससे संतानोत्पति क्षमता जा सकती है। तनाव का असर महिलाओं में उनके मासिक धर्म पर पड़ता है। अनियमित होने के साथ अन्य परेशानियां भी बढ़ जाती हैं। यौनेच्छा भी घटने लगती है। तो क्या अब भी आप तनाव में ही डूबे रहेंगे या खुशियां तलाशने निकलेंगे?