होम्योपैथिक दवाएं सिर्फ मीठी गोलियां नहीं है, काफी असरकाक भी होती है

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होम्योपैथिक दवाएं सिर्फ मीठी गोलियां नहीं है, काफी असरकाक भी होती है

होम्योपैथिक गोलियों को लेने से इनमें मौजूद औषधि जीभ से अवशोषित होकर शरीर में जाती है। होम्योपैथी चिकित्सा और इसमें प्रयोग होने वाली दवाओं को लेकर समाज में कई तरह के भ्रम मौजूद हैं जिन्हें दूर करना जरूरी है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ भ्रम और उनकी सच्चाई के बारे में....

 

भ्रम - होम्योपैथी औषधियों का असर देर से होता है?

सच - यह बिल्कुल गलत है। ज्यादातर मामलों में रोगी होम्योपैथी डॉक्टर के पास तब आता है जब वह लंबे समय से उसकी बीमारी से पीड़ित रहता है तथा किसी भी अन्य चिकित्सा पद्धति से लाभ नहीं हुआ होता है। ऐसी अवस्थआ में उपचार में समय अवश्य़ लगता ही है।

भ्रम - यह पद्धति पहले रोग बढ़ाती है फिर ठीक करती है?

सच - अगर विशेषज्ञ के पास आने से पहले रोग को दबा दिया गया हो तो इलाज के दौरान कई बार पुराने दबे लक्षण फिस से उभर आते हैं जो सामन्य प्रक्रिया है।

भ्रम - यह मीठी गोलियां ज्यादा असर नहीं करतीं? 

सच - ये मीठी गोलियां दवा के वाहक की तरह काम करती हैं। इन गोलियों में दवा के अर्क को मिलाया जाता है। इनमें मौजूद औषधि जीभ से अवशोषित होकर शरीर में जाती है।

भ्रम - डायबिटीज के रोगी को ये गोलियां नहीं लेनी चाहिए?

सच - इन दवाओं में शुगर की मात्रा न (नैनोडोज) के बराबर होती है। लेकिन डायबिटीज के रोगी होम्योपैथिक दवाइयों को डिसटिल्ड वायर में या उबले हुए पानी में प्रयोग कर सकते हैं।

भ्रम - यह चिकित्सा विश्वास पर आधारित है, इसकी कोई प्रमाणिकता नहीं है?

सच - सभी होम्योपैथिक दवाएं वैज्ञानिक तरीके से प्रमाणित होती हैं। इन औषधियों का परीक्षण हर आयु वर्ग की महिला एवं पुरूष पर करने के बाद, उनसे प्राप्त लक्षणों को इस चिकित्सा पद्धति का आधार बनाया जाता है।

भ्रम- इसमें बहुत परहेज करना पड़ता है?

सच - होम्योपैथिक दवाएं जीभ से अवशोषित होती हैं इसलिए इन्हें लेने से पहले और बाद के 15 मिनट तक जीभ व मुंह का साफ होना जरूरी होता है। इस उपचार में रोगी को बीमारी के अनुसार सामान्य परहेज करने की सलाह दी जाती है।

भ्रम - होम्योपैथिक चिकित्सा के दौरान रोगी इमरजेंसी में अन्य दवाएं नहीं ले सकता है?

सच- ऐसा नहीं है, रोगी अन्य दवाओं का सेवन कर सकता है।

भ्रम - सभी होम्योपैथिक दवाएं एक जैसी होती हैं?

सच - नहीं, ये दवाएं सिर्फ दिखने में एक जैसी होती हैं। इस पद्धति में प्रत्येक रोगी के लिए दवा का चयन रोगों के आधार के साथ-साथ लक्षण व उसके व्यक्तित्व के आधार पर किया जाता है।