क्या होता है मेल मेनोपॉज?

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उम्र बढऩा मन का मामला है, यदि आप इस पर ध्यान नहीं देते हैं, तो यह महत्वपूर्ण नहीं है। इसके उलट उम्र बढऩा हमेशा से ही चिंता का विषय रहा है। भारत में पौराणिक पात्र ययाति को एक उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। हस्तिनापुर के महाराज ययाति पराक्रम, ऐश्वर्य और भोग-विलास करने के लिए अपने पुत्र पुरू से उसका यौवन लेते हैं और उसे अपनी जरावस्था दे देते हैं।
बाद में क्या होता है, इसका संबंध इस लेख से नहीं है, इसलिए इसे यहीं रहने दें। मूल बात यह है कि अपनी जरावस्था यानी बुढ़ापे को पुरुष आसानी से पचा नहीं पाता है। तभी तो दुनिया भर में एंटी-एजिंग को लेकर रिसर्च किए जा रहे हैं, किसी भी तरह से उम्र बढऩे के प्रभाव को रोकने का कोई फार्मूला मिल जाए...आखिर इसकी जड़ में कौन-सी वजहें हैं?
कुछ तो इसके पीछे के चिकित्सकीय कारण हैं तो कुछ सामाजिक...। मेडिकल साइंस इसे हार्मोनल चेंज का मामला बताता है। हम अपने आसपास देखते हैं कि धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में बढ़ती उम्र के लोग ज्यादा सक्रिय होते हैं। युवावस्था में तेज रफ्तार गाडिय़ों, तीखा-सनसनाता संगीत, तेज गति की जीवन-शैली और संघर्ष करने की प्रवृत्ति ज्यादा नजर आती है, लेकिन उम्र बढ़ते ही पुरुष इन सबसे दूर होने लगता है। सुनते और महसूस भी करते हैं कि उम्र बढऩे के साथ ही स्वभाव की उग्रता, गुस्सा और तीखापन कम होता जाता है मगर चिड़चिड़ाहट बढ़ जाती है। खतरों की तुलना में सुरक्षा को ज्यादा तवज्जो दी जाने लगती है। याददाश्त कम होती है और भावुकता बढऩे लगती है।
इस तरह के व्यवहारिक लक्षण पुरुषों में स्पष्ट, मुखर औऱ ज्यादा 'प्रॉमिनेंटÓ होते है, बजाय महिलाओं के... क्योंकि महिलाएं पहले से ही 'टैंडरÓ होती हैं। पुरुष अपनी युवावस्था में कभी भी इतना कोमल, इतना भावुक नहीं रहता है, जितना बढ़ती उम्र में होने लगता है। सवाल उठता है कि ऐसा क्यों होता है और इस अवस्था को क्या कहा जाता है?
पुरुषों में होने वाले इस तरह के मनोवैज्ञानिक, व्यवाहारिक और शारीरिक परिवर्तन को एंड्रोपॉज कहा जाता है, इस पर मेडिकल साइंस तो चर्चा करता है, लेकिन सामाजिक-पारिवारिक स्तर पर इस विषय पर चर्चा करने से बचा जाता है। बहुत स्वाभाविक है कि पुरुषों के लिए उसका कथित पौरुष इतना महत्वपूर्ण होता है कि उसमें आने वाले कोमल और भावनात्मक परिवर्तन उसकी कमजोरी का प्रतीक माने जाते है, बजाय उसके ज्यादा मानवीय होने के...।
हमारी व्यवस्था में नर पैदा होता है और फिर समाज उसे पुरुष बनाता है, जैसे सिमोन ने स्त्री के लिए कहा था कि स्त्री पैदा नहीं होती बनाई जाती है, उसी तरह पुरुष भी...उसे अपने पुरुष होने को सिद्ध करने के लिए हमेशा 'टफÓ होना और दिखाई देते रहना होता है, लेकिन फिलहाल तक तो वक्त बलवान है और जिस तरह महिलाओं में मेनोपॉज होता है, उसी तरह पुरुषों में एंड्रोपॉज होता है।

क्या होता है एंड्रोपॉज?

एंड्रोपॉज पुरुषों में उम्र बढऩे के साथ होने वाले भावनात्मक और शारीरिक परिवर्तन को कहते हैं। यद्यपि ये लक्षण सारे उम्र बढऩे से संबंधित हैं, फिर भी इसका संबंध कुछ विशिष्ट किस्म के हार्मोंनों में बदलाव से है। इसमें उम्र बढऩे के साथ पुरुषों में हार्मोंस के तेजी से प्राकृतिक क्षरण होता है। एंड्रोपॉज को मेल मेनोपॉज, पुरुषों का संकट-काल, हाइपोगोनेडिज्म का हमला, उम्र बढऩे के साथ एंड्रोजन के गिरने से या वीरोपॉज भी कहा जाता है।
न्यूयॉर्क के डॉ. वर्नर कहते हैं कि एंड्रोपॉज हकीकत में पुरुषों का मेनोपॉज है। वे कहते हैं कि दरअसल एंड्रोपॉज सही शब्द नहीं है, क्योंकि यह प्रक्रिया मेनोपॉज की तरह सभी में नहीं देखी जाती। न ही यह प्रजनन क्षमता समाप्त होने पर अचानक आ जाती है। यह उम्र बढऩे के साथ कई पुरुषों में होने वाली सामान्य प्रक्रिया है और यह उम्र बढऩे के साथ-साथ बढ़ती जाती है।

कब से शुरू होती है यह प्रक्रिया?

इसमें 40 से 49 साल की अवस्था के साथ 2 से 5 प्रतिशत की गति से यह प्रक्रिया बढ़ती है, इसी तरह 50 से 59 के बीच की अवस्था के साथ 6 से 40 , 60-69 में 20 से 45 प्रतिशत, 70-79 में 3 ऐ 4 और 70 प्रतिशत के बीच बढ़ती जाती है। इसी तरह 80 साल की उम्र में हाईपोगोनेडिज्म के गिरने की दर 91 प्रतिशत तक होती है। इसमें मध्यवय के पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन और डिहाईड्रोपियनड्रोस्टेरॉन हार्मोन बनने की प्रक्रिया धीमी लेकिन स्थिर गति से कम होती जाती है और इसके परिणामस्वरूप लिडिंग सेल्स बनने में भी कमी हो जाती है।

क्या होता है इसमें?

चूँकि इस दौरान टेस्टोस्टेरॉन बनने की गति धीमी होने लगती है, इसलिए इस तरह के हार्मोंनल बदलाव पुरुषों में शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तन भी लाते हैं। इस समय में आमतौर पर पुरुष अपने परिवार का साथ चाहते हैं।
अपनी युवावस्था में करियर, पैसा और शक्ति को केंद्र में रखते हैं तो एंड्रोपॉज के दौरान उनके केंद्र में परिवार, दोस्त और रिश्तेदार आ जाते हैं। वह अपने बच्चों के प्रति 'मातृवत' होने लगता है। घरेलू काम जैसे खाना बनाना, सफाई करना और बच्चों की देखभाल करना उसे अच्छा लगने लगता है। धार्मिक और आध्यात्मिक रुझान बढऩे लगता है। वह व्यर्थ के झंझट मोल लेने से बचने लगता है मगर चुनौतियां लेने से नहीं।
इस वक्त वह अपने अर्जित अनुभव को सान पर चढ़ाना चाहता है, उसे उपयोग करना और परखना चाहता है। ऐसे में उसे शारीरिक बदलाव के चलते चुनौती लेने लायक न समझा जाए तो वह कुंठित होता है। हां, उसे एडवेंचरस खेलों की तुलना में टीवी देखना ज्यादा भाता है। इस तरह के बदलाव से कभी-कभी पुरुष चिड़चिड़ाने भी लगता है।
मनोचिकित्सक बताते हैं कि पुरुषों के लिए चूंकि सामाजिक स्तर पर 'पौरुष' एक मूल्य के तौर पर स्थापित है, इसलिए जब पुरुष इसे कम होता देखता है तो वह थोड़ा निराश और थोड़ा चिड़चिड़ा होने लगता है, वह इसे आसानी से हजम नहीं कर पाता है। दरअसल कमजोरी और हमेशा 'पुरुष' होने और बने रहने की सामाजिक अपेक्षा की वजह से उसका व्यवहार कभी-कभी रूखा और चिड़चिड़ा हो जाता है।