सांस की बीमारी है ब्रांकाइटिस

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सांस की बीमारी है ब्रांकाइटिस

ब्रांकाइटिस या श्वसनीशोथ श्वसन सबंधी एक बीमारी है। इसमें ब्रोन्कियल ट्यूब्स या मुंह और नाक और फेफड़ों के बीच के हवा के मार्ग सूज जाते हैं। विशेष रूप से, ब्रांकाइटिस में ब्रोन्कियल ट्यूब्स की लाइनिंग की सूजन हो जाती है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों में फेफड़ों में ऑक्सीजन लेने की क्षमता घट जाती है। इससे वायु मार्ग पर कफ का निर्माण होने लगता है।

ब्रांकाइटिस के प्रकार

यह दो प्रकार की होती है। तीव्र और दीर्घकालीन। तीव्र ब्रांकाइटिस अल्पकालिक होती है जो कि विषाणु जनित रोग फ्लू या सर्दी-जुकाम के होने के बाद विकसित होती है। इसके लक्षण बलगम के साथ सीने में बेचैनी या वेदना, बुखार और कभी-कभी श्वास लेने में तकलीफ का होना होता है। जबकि तीव्र ब्रांकाइटिस कुछ दिनों या कुछ हफ्तों तक जारी रहती है। दीर्घकालीन ब्रांकाइटिस विशेष रूप से महीने के अधिक से अधिक दिनों, वर्ष में तीन महीनों और लगातार दो वर्षों तक और किसी दूसरे कारण के अभाव में, बलगम वाली अनवरत खांसी का जारी रहना। दीर्घकालीन ब्रांकाइटिस के रोगी सांस की विभिन्न तकलीफें महसूस करते हैं, और यह अवस्था वर्ष के अलग भागों में बेहतर या बदतर हो सकती है।

ब्रांकाइटिस के कारण

तीव्र ब्रांकाइटिस उसी विषाणु के कारण होती है जिसके कारण सर्दी-जुकाम और फ्लू होते हैं। दीर्घकालीन ब्रांकाइटिस ज्यादातर धूम्रपान से होती है। तीव्र ब्रांकाइटिस के बार-बार होने पर भी दीर्घकालीन ब्रांकाइटिस की समस्या हो जाती है। इसके अलावा प्रदूषण, धूल, विषैली गैस, और अन्य औद्योगिक विषैले तत्व भी इस अवस्था के जिम्मेदार होते हैं। श्वसन नली में सूजन या जलन, खांसी, श्वेत, पीले, हरे या भूरे रंग के बलगम का निर्माण, हांफना, सांस की घरघराहट, थकावट, बुखार और सर्दी जुकाम, सीने में पीड़ा या बेचैनी, बंद या बहती नाक आदि ब्रांकाइटिस के लक्षण होते है। धूम्रपान करने, कमजोर प्रतिकारक क्षमता भी वयस्कों और शिशुओं में इस खतरे के जिम्मेदार हैं।

ब्रांकाइटिस के लक्षण

  • गले में खराश
  • थकान
  • नाक में जमावट या नाक का बहना
  • बुखार
  • शरीर में दर्द
  • उल्टी, दस्त

ब्रांकाइटिस से बचाव

  • धूम्रपान करने और पर्यावरण में मौजूद तंबाकू के धुएं के संपर्क में आने से बचें।
  • वायरल संक्रमण के फैलाव को सीमित करें।
  • नम हवा में सांस लेने से बलगम पतला हो जाता है और उसे फेफड़ों से बाहर निकालना आसान हो जाता है। पानी पीने से भी फेफड़ों में मौजूद बलगम को पतला करने में मदद मिलती है।
  • मूलिन की चाय श्लेष्म झिल्ली को आराम देने और फेफड़ों से बलगम को हटाने में मदद करता है।
  • श्वसन चिकित्स्क कभी-कभी मरीजों को एक उपकरण में फूंक मरने को कहते हैं जो की गुब्बारे जैसा होता है और जिससे फेफड़ों का व्यायाम होता है।
  • लाल मिर्च, करी पत्ती और अन्य मसालेदार खाद्य पदार्थ जो आपकी आँखों और नाक में पानी लाते हैं, आपके बलगम के स्राव को पतला कर सकते हैं।