थैलेसीमिया के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट

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थैलेसीमिया के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट

नुष्य का आंतरिक भाग जितना जटिल होता है, उतना ही हर छोटे से छोटे सेल को अपनी भूमिका निभाने की आवश्यकता होती है। हर कोई लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं या शरीर की लड़ाकू कोशिकाओं के बारे में सुने हैं जो संक्रमण से लडऩे और ऑक्सीजन ले जाने के लिए आवश्यक है। ये कोशिकाएँ बोन मैरो द्वारा निर्मित होती हैं।

यदि किसी संक्रमण या बीमारी के कारण बोनमैरो ठीक से काम नहीं कर रहा हो, तो एक स्वस्थ बोन मैरो डोनर या स्वयं से लेकर रोगी में डाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया को बोन मैरो ट्रांसप्लांट कहते हैं।

यह कब किया जाता है?

यह प्रक्रिया निम्न मामलों में किया जाता है

  • ल्यूकेमिया
  • लिंफोमा
  • सिकल सेल एनीमिया
  • सीवियर अप्लास्टिक एनीमिया
  • फैंकोनी एनीमिया
  • पैराक्सिमल नोर्क्चेनल हीमोग्लोबिनुरिया
  • अमेगैर्योसाइटोसिस / कन्जेनिटल
  • थ्रोम्बोसाइटोपेनिया
  • सीवियर क्बाइन्ड इ्यूनोडेफिसिएंसी
  • विस्कॉट-एल्ड्रिच सिंड्रोम
  • बीटा थैलेसीमिया मेजर
  • हर्लर सिंड्रोम
  • एड्रेनोलुकोडिस्ट्रॉफी
  • मेटाक्रोमैटिक ल्यूकोडिस्ट्रॉफी
  • मायलोइड्सिप्लास्टिक सिंड्रोम और
  • मायलोप्रोलिफेरेटिव विकार
  • मल्टीपल मायलोमा और अन्य प्लाज्मा सेल
  • विकार
  • अदर हिस्टियोसाइटिक डिसॉर्डर

थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है जिसमें शरीर असामान्य या अपर्याप्त हीमोग्लोबिन बनाता है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक प्रोटीन वर्णक है जो ऑक्सीजन को वहन करता है। यहां बड़ी संख्या में लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे एनीमिया होता है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट कौन करता है?

बोन मैरो ट्रांसप्लांट डॉक्टर्स की एक बहु-अनुशासनात्मक टीम द्वारा किया जाता है जो प्रशिक्षित बीएमटी विशेषज्ञ, हेमटोलॉजिस्ट और अन्य संबंधित विशेषज्ञों की निगरानी में होता है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट 2 प्रकार के होते हैं- 

ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट्स - व्यक्ति के स्वयं के स्टेम सेल का उपयोग करना

एलोजेनिएक ट्रांसप्लांट्स - डोनर की स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करना

रोग के पहचान के बाद भी स्टेम सेल्स के प्रकार को अंतिम रूप देने के लिए कई प्रकार के परीक्षण की आवश्यकता होती। यह प्रक्रिया ब्लड ट्रॉन्सफ्यूशऩ की तरह ही है लेकिन संक्रमण से बचने के लिए अस्पताल के सामान्य ओपीडी / आईपीडी से अलग किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में एक सप्ताह तक का समय लग सकता है इसलिए घर के आसपास अस्पताल हो तो अच्छा है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट केंद्र में रोगी को उनके परिणामों को प्रभावित करने वाले कारकों के आधार पर 3 वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। ये कारक हैं-

केलेशन की पर्याप्तता

लिवर फाइब्रोसिस की उपस्थिति

हिपेटोमेगेली की उपस्थिति

थैलेसीमिया की पहचान

रक्त परीक्षण-पूर्ण रक्त गणना

थैलेसीमिया के अल्फा या बीटा प्रकार को परिभाषित करने के लिए हीमोग्लोबिन परीक्षण

 

बोन मैरो ट्रांसप्लांट कैसे किया जाता है?

बोन मैरो या हेमेटोपोएटिक सेल ट्रांसप्लांट में बोन मैरो में थैलेसीमिया पैदा करने वाली कोशिकाओं को मिटाने के लिए हाई कीमोथेरेपी दिया जाता है, इनमें फिर डोनर से ली गई स्वस्थ सेल्स को प्रतिस्थापित किया जाता है। डोनर वह व्यक्ति है जिसका ह्यूमन-ल्यूकोसाइट एंटीजन (एचएलए) रोगी के साथ मेल खाता है, आमतौर पर अपने भाई-बहन। रोगी जितना युवा होगा इसका परिणाम उतना हीं अच्छा होगा।

यदि आप का अपना ही सेल्स चढ़ाना है तो कीमोथेरेपी सत्र शुरू होने से पहले इसे निकल कर स्टेम सेल बैंक में रखा जाता है। एनेस्थीसिया के तहत सुई के माध्यम से दोनों हिप बोन्स से कोशिकाओं को निकाला जाता है। डोनर से स्टेम सेल्स इक्कठा करने के लिए उन्हें कुछ दवाएं इंजेक्ट की जाती है जिससे स्टेम सेल बोन मैरो से रक्त में स्थानांतरित हो जाता है जिन्हें फिर ड्रिप के माध्यम से एक मशीन में एकत्र किया जाता है। यह मशीन बाकी रक्त से सफेद रक्त (स्टेम सेल युक्त) सेल को अलग करती है। जब रोगी को ट्रांसफ्य़ूज़ किया जाता है, तो एक सेंट्रल लाइन छाती के माध्यम से सीधे हृदय तक ले जाया जाता है जिससे स्टेम सेल सीधे हृदय से होता हुआ पूरे शरीर से बोन मैरो तक चला जाए। यहां वे स्थापित होते हैं और फैलना शुरू करते हैं। ये सत्र कई बार किए जाते हैं जिससे सफलता सुनिश्चित किया जा सके। सभी सत्र पूरे होने तक सेंट्रल लाइन बरकरार रहती है।